जैसा कि हम सभी जानते हैं आज भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का जन्मदिन है। साधारण परिवार में जन्मे धोनी ने अपनी मेहनत और लगन से भारतीय क्रिकेट के इतिहास में अपनी वह जगह बनाई है। जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल बन गई है। लेकिन दिलचस्प बात तो यह है कि तुम टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने कामयाबी हासिल करने के लिए जिंदगी में कड़ी मेहनत की है, उनके खाक से खास बनने का सफर बेहतरीन हैं।
आपको बता दें रांची के उनके स्कूल और उस इलाके में जहां धोनी पढ़े हैं। वहा के लोग उनके बारे में दिलचस्प किस्से बताते हैं। स्कूल के दिनों में तो माही फुटबॉल टीम में गोलकीपर थे और क्रिकेट में उनकी दिलचस्पी बिल्कुल नहीं थी। कहते हैं कि स्कूल की क्रिकेट टीम में एक अच्छे विकेटकीपर की तलाश थी और इसी दौरान उनके टीचर की नजर धोनी पर पड़ी। धोनी ने साफ इनकार कर दिया था लेकिन बाद में उन्होंने अपने टीचर की बात मान ली। आज ये बात सुनकर किसी को भी हैरानी हो सकती है कि धोनी को विकेटकीपर बनाने के लिए तब टीचर को मिन्नतें करनी पड़ी थी। हालांकि एक बार जब धोनी ने अपना रोल बदला तो फिर पूरी तरह क्रिकेट में रम गए।
इसके बाद विकेटकीपिंग के साथ बल्लेबाजी का हुनर सीखने के लिए माही ने दिन-रात एक कर दिया रांची के जिस इलाके में धोनी क्रिकेट खेलते थे। वहां आज भी लोग उनके जुनून का जिक्र करते हैं। माही की हसरत क्रिकेट में अपना अलग मुकाम बनाना था लेकिन यह सफर अभी बहुत लंबा और बहुत ही मुश्किल था। महेंद्र सिंह धोनी की काबिलियत पर क्रिकेटर के जानकारों की नजर पड़ चुकी थी। बेहद कम उम्र में उन्हें बिहार की ओर से रणजी ट्रॉफी में खेलने का मौका भी मिल गया। रणजी में अच्छा खेल दिखाया तो रेलवे ने धोनी को नौकरी ऑफर कर दी। साधारण परिवार के लिए सरकारी नौकरी बहुत मायने रखती है लिहाजा धोनी ने नौकरी ज्वाइन कर ली। लेकिन किस्मत ने धोनी को पश्चिम बंगाल के खड़कपुर रेलवे स्टेशन पर टिकट कलेक्टर की नौकरी करने के लिए ही चुना था। खुद धोनी के भी सपने अलग थे। 1 दिन नौकरी छोड़ कर वापस आ गए फिर रांची के एक मैदान पर क्रिकेट प्रैक्टिस शुरू हो गई।
दरअसल, यह वह दौर था जब भारतीय क्रिकेट टीम को एक अच्छे विकेटकीपर की तलाश थी। सौरभ गांगुली कप्तान थे और कई ऑप्शन पर विचार कर रहे थे। मुश्किल यह भी थी कि टीम में लोअर ऑर्डर पर कोई ऐसा बल्लेबाज नहीं था जो जो अंदर बैटिंग के दम पर विपक्षी टीम के छक्के छुड़ा दे। धोनी को 2003 में जिंबाब्वे और केन्या के दौरे पर इंडिया ए टीम में पहली बार जगह मिली माही ने मौका का फायदा उठाया और 7 मैचों में 362 रन ठोक दिए। इस दौरान उन्होंने 7 कैच और 4 स्टंपिंग भी की। दादा यानी सौरव गांगुली की नजर धोनी पर पड़ी और उन्होने माही पर दांव खेलने का फैसला कर लिया। साल 2004 में महेंद्र सिंह धोनी को टीम इंडिया में पहला मौका मिला।
महेंद्र सिंह धोनी शुरुआती मैचों में नाकाम रहे। बांग्लादेश के खिलाफ डेब्यू करते हुए अपने तीन मैचों में उन्होंने सिर्फ 19 रन बनाए। लेकिन दादा का उनपर भरोसा बना रहा। 2005 की शुरुआत में जब पाकिस्तानी टीम भारत दौरे पर आई तो उन्हें टीम में जगह मिली। पहले मैच में धोनी ने सिर्फ तीन रन ही बनाए थे। लेकिन विशाखापत्तनम के मैच में गांगुली ने एक अजीब फैसला किया। धोनी को प्रमोट करके तीसरे नंबर पर भेजा गया। यहां से नया इतिहास बन गया। धोनी ने इस मैच में 123 गेंदों पर 148 रन की पारी खेली और भारत को 58 रन से जीत दिलाई। इसके बाद धोनी की बल्लेबाजी और उनका हेयर स्टाइल एक साथ देश भर में चर्चा का विषय बन गया।
पाकिस्तान दौर पर गए महेंद्र सिंह धोनी (माही) ने आतिशी बल्लेबाजी की थी। यहां तक कि पाकिस्तान में भी अपने फैन बना लिए थे। उनके चाहने वालों में तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भी थे। अवॉर्ड सेरेमनी में मुशर्रफ ने धोनी की बल्लेबाजी के साथ-साथ उनके लंबे बालों की भी जमकर तारीफ की।